Kumbh scientific time calculation: डॉ दिलीप अग्निहोत्री: प्रयागराज महाकुंभ की गूंज दुनिया में सुनाई दे रही है। बड़ी संख्या में विदेशी श्रद्धालु भी यहां अमृत स्नान के लिए पहुंच रहे है। उनकी आस्था भाव विह्वल करती है। उनको कुंभ (Kumbh) और महाकुंभ आयोजन की काल गणना भी प्रभावित करती है। इस बार एक सौ चवालीस वर्ष बाद महाकुंभ का यह संयोग बना है। जब सूर्य मकर राशि में और गुरु वृषभ राशि में होते हैं तब प्रयागराज में महाकुंभ लगता है।
कुंभ और वैज्ञानिक काल गणना
हरिद्वार में कुंभ मेला (Kumbh) तब लगता है, जब सूर्य मेष राशि में और गुरु कुंभ राशि में होते हैं. नासिक में कुंभ मेला तब लगता है, जब सूर्य और गुरु दोनों ही सिंह राशि में होते हैं. उज्जैन में कुंभ मेला तब लगता है,जब सूर्य मेष राशि में और गुरु सिंह राशि में होते हैं.
Kumbh का आयोजन ग्रहों और राशियों पर निर्भर
स्पष्ट है कि Kumbh मेले का आयोजन किस स्थान पर कब होगा यह ग्रहों और राशियों पर निर्भर करता है। कुंभ मेले में सूर्य, चंद्र और गुरु ग्रहों का विशेष महत्व होता है. जब सूर्य और गुरु एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तभी कुंभ मेले का आयोजन होता है और इसी आधार पर स्थान और तिथि निर्धारित की जाती है. यह भारत की काल गणना और ज्योतिष शास्त्र का चमत्कार है। जिससे आज पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है।
दुनिया की सर्वाधिक प्राचीन व वैज्ञानिक काल गणना का अविष्कार भारत में हुआ था। इसमें समय के न्यूनतम अंश का भी समावेश है। प्रलय के बाद भी यह काल गणना निरन्तर जारी रहेगी, प्रासंगिक रहेगी।
भारतीय काल गणना मेंग में परमाणु से लेकर कल्प तक का विचार है।
ब्रह्मा जी ने काल गणना की थी
इसलिए यह पूर्णतया वैज्ञानिक है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही पृथ्वी माता का प्रादुर्भाव हुआ। इसी के साथ ब्रह्मा जी ने काल गणना का श्री गणेश किया था। भारतीय कालगणना में क्रमशः प्रहर, दिन-रात,पक्ष,अयन, संवत्सर,दिव्यवर्ष, मन्वन्तर,युग,कल्प और ब्रह्मा की गणना की जाती है।
हमारे ऋषियों ने चक्रीय अवधारणा का सुंदर वर्णन किया। काल को कल्प, मन्वंतर, युग में विभाजित किया। चार युग बताए। सतयुग,त्रेता, द्वापर और कलियुग। इनकी चक्रीय व्यवस्था चलती है। अर्थात ये शाश्वत रूप से आते जाते हैं। इसकी पुनरावृत्ति होती रहती है।
भारतीय वैज्ञानिक काल गणना की विशेषता
पृथ्वी के प्रादुर्भाव के एक अरब सत्तानबे करोड़ उनतीस लाख उनचास हजार एक सौ बाइस वर्ष हो चुके हैं। इस अवधि में एक पल का भी अंतर नहीं हुआ है। यह भारतीय वैज्ञानिक काल गणना की विशेषता है। इसकी बराबरी के विषय में दुनिया की अन्य काल गणना कल्पना भी नहीं कर सकती।
ईसा पूर्व और ईसा बाद का प्रचलन तथ्य परक नहीं है। प्राचीन भारत के गुरुकुल अनुसन्धान के केंद्र हुआ करते थे। यह अवधारणा ही प्राकृतिक है। इसमें पिंड व ब्रह्मांड का भी विचार है। अंतर व बाह्य चेतना का परम् सत्ता से संबन्ध है। जो प्रत्यक्ष दिखता है,वही पूर्ण सत्य नहीं है।
खगोल विज्ञान के लिए भी चमत्कार
भारतीय काल गणना आधुनिक खगोल विज्ञान के लिए भी चमत्कार से कम नहीं। क्योंकि इसका अविष्कार उस समय हुआ था जब दुनिया में अन्यत्र शायद कोई सभ्यता नहीं थी। इसका आंकलन ईसापूर्व जैसी परिधि में संभव ही नहीं है। यह काल गणना पृथ्वी के प्रादुर्भाव से प्रारंभ होती है।
यह शाश्वत है, चारों युग समाप्त होंगे, नए युगों का चक्र प्रारंभ होगा, लेकिन यह काल गणना तब भी इसी गति से चलती रहेगी। इसमें एक पल का भी अंतर नहीं आएगा। इसके लिए प्रकृति की समझना होगा। प्रकृति के निकट जाना पड़ेगा। जीवन शैली में उसी के अनुरूप परिवर्तन करना होगा।
कुंभ और महाकुंभ का क्रम
कर्म और प्रारब्ध या भाग्य का यह अविनाशी चक्र निरंतर चलता रहता है। ज्योतिष के मुताबिक, गुरु बृहस्पति को सभी राशियों का चक्र पूरा करने में बारह साल लगते हैं। इसी के अनुरूप कुंभ (Kumbh) और महाकुंभ का क्रम संचालित होता है।
ऐसे आयोजन भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को भी सुदृढ़ करते है। सांस्कृतिक और उपासना पद्धतियों में अंतर होने के बाद भी एकता के सूत्र कायम रहते है। कुंभ (Kumbh) एकता के अवसर भी प्रदान करते है।
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