Deepti Naval: समांतर सिनेमा की सशक्त अदाकारा दीप्ति नवल हैं बहुआयामी कलाकार
Deepti Naval: समांतर सिनेमा की सशक्त अदाकारा दीप्ति नवल हैं बहुआयामी कलाकार
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Deepti Naval story in Hindi: अरुण कुमार कैहरबा: हिन्दी सामान्तर सिनेमा की प्रसिद्ध अदाकारा दीप्ति नवल का व्यक्तित्व बहुआयामी है। हिन्दी के साथ-साथ उन्होंने अंग्रेजी व पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय के अलावा निर्देशन भी किया है।

सिनेमा में Deepti Naval अपने कलात्मक अभिनय व सादगी के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने 70 के करीब फिल्मों में काम किया है। सिनेे तारिका के अलावा वे कवयित्री, चित्रकार व छायाकार भी हैं। उन्हें संगीत की भी अच्छी जानकार हैं और कईं वाद्य यंत्र बजाना जानती हैं।

दीप्ति नवल का जन्म पंजाब प्रांत के अमृतसर में 3 फरवरी, 1952 को बुद्धिजीवी उदय सी. नवल और चित्रकार हिमाद्रि नवल के घर में हुआ। दीप्ति ने अमेरिका में सिटी युनिवर्सिटी न्यूयार्क के बाद मैनहट्टन स्थित हंटर कॉलेज से ललित कला में स्नातक डिग्री की।

जलियांवाला बाग फिल्म से हुई शुरुवात

अमेरिका में रहते हुए Deepti Naval कईं भारतीय कलाकारों के सम्पर्क में आईं। पढ़ाई के बाद भारत में आने पर उनका फिल्मी करियर शुरू हुआ। 1977 में उन्होंने फिल्म ‘जलियांवाला बाग’ में फिल्म में छोटी सी भूमिका निभाई। इसी प्रकार 1978 में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘जुनून’ में भी काम किया।

बाद में 1980 में आई ‘एक बार फिर’ में मुख्य भूमिका से उन्होंने फिल्मों में भली प्रकार से शुरूआत कर दी। इसके बाद सिलसिला चल निकला। चश्मे बद्दूर (1981), अंगूर (1982), किसी से ना कहना (1983) व कथा (1983) जैसी साफ-सुथरी पारिवारिक फिल्मों में अपने अभिनय कौशल का प्रदर्शन करने के बावजूद दीप्ति को बहुत फायदा नहीं हुआ, क्योंकि इन भूमिकाओं में कोई बड़ी चुनौती नहीं थी।

चुनौती भरी पहली मुख्य भूमिका 1984 में प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘कमला’ में मिली जोकि एक सच्ची घटना पर आधारित थी। अगले साल प्रकाश झा निर्देशित फिल्म ‘दामुल’ में अपनी भूमिका से दीप्ति ने समांतर राजनैतिक फिल्मों की दुनिया में हलचल मचा दी। 1987 में ‘मिर्च मसाला’ में मुखी की पत्नी की छोटी-सी भूमिका में भी दीप्ति ने अपनी अलग पहचान दर्ज करवाई।

Deepti Naval ने लीक से हटकर भूमिका निभाई

Deepti Naval: 1988 में बनी फिल्म ‘मैं जि़न्दा हूँ’ उन्होंने लीक से हटकर भूमिका निभाई, जहाँ पति के होते हुए वैधव्य की पीड़ा भोग रही औरत अपना जीवन अपने तरीके से जीने का हक हासिल करती है। समान्तर कला फिल्मों में सामाजिक चेतना फैलाने वाली इस प्रकार की भूमिकाएं कम मिलती हैं।

अपने स्वाभाविक अभिनय के द्वारा 80 के दशक में आई आर्ट फिल्मों की वे एक संवेदनशील अदाकारा के रूप में विख्यात हुई। सिनेमा के इतिहास में फारूख शेख़ के साथ उनकी जोड़ी को खूब सराहा गया। चश्मे बद्दूर, कथा, साथ-साथ, किसीसे ना कहना, रंग-बिरंगी, टेल मी ओ खुदा व लिसन अमाया में दोनों की जोड़ी अपने कलात्मक अभिनय के बल पर लोगों के मन में समा गई।

पंजाबी फिल्म में भी अभिनय किया

1989 में बहुचर्चित पंजाबी फिल्म मढ़ी दा दीवा में Deepti Naval ने सशक्त अभिनय किया है। उन्होंने इन्कार, औरंगजेब, बी.ए. पास व यारियाँ आदि फिल्में की हैं। 2009 में आई दो पैसे की धूप, चार आने की बारिश फिल्म दीप्ति नवल ने निर्देशित भी की है और लिखी भी है। छोटे पर्दे पर भी उन्होंने शानदार उपस्थिति दर्ज करवाई है।

कलर्स चैनल पर मुक्ति बंधन सीरियल में Deepti Naval की भूमिका की खूब सराहना हुई। 2015 में आई एनएच-10 फिल्म में उन्होंने पहली बार खलनायिका की भूमिका निभाई, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहकलाकार का पुरस्कार मिला। एक कलाकार के रूप में उन्हें इस बात की तड़प रहती है कि उन्हें चुनौतिपूर्ण किरदार करने का मौका नहीं मिला।

सिनेमा में सादगी के खत्म होने को लेकर दीप्ति नवल (Deepti Naval) खासी चिंतित हैं। उन्होंने एक बार बातचीत में कहा था, ‘यह सच है कि हमारा सिनेमा हर तरह से विकसित हुआ है। यह दावे से कह सकते हैं कि हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी से कम नहीं हैं।

हमारे पास मंजे हुए एक्टर व तकनीशियन हैं, लेकिन अफसोस भी होता है कि आज की फिल्मों में मासूमियत नहीं रही। पश्चिमीकरण हो गया है। भारतीयता कम हो गई है, खासकर हीरोइनों में। हमारे सिनेमा में जो खूबसूरती और सादगी थी, वह खत्म हो गई है।’

कविताओं से सांझा किया अनुभव

पर्दे पर अभिनय और निर्देशन के साथ-साथ Deepti Naval ने कविता के रूप में अपनी भावनाओं को उकेरा है। 1981 में उनका हिन्दी काव्य संग्रह ‘लम्हा-लम्हा’ प्रकाशित हुआ। उनका दूसरा काव्य संग्रह ‘ब्लैक-विंड’ ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर से प्रकाशित हुआ। अपने बचपन की कहानी पर उन्होंने अ कंट्री कॉल्ड चाइल्डहुड नाम की किताब लिखी है। इस किताब में उन्होंने अमृतसर में अपने बचपन और युवावस्था के दिनों को याद किया है।

Deepti Naval कहती हैं कि उनके बचपन में अमृतसर में फेरीवाले लाउडस्पीकर से फिल्मों का प्रचार करते थे। 1956 में उन्होंने पहली फिल्म देखी-दुर्गेश नंदिनी। राज कपूर की फिल्मों ने उन पर गहरा असर किया। 8-9 साल की उम्र में ही दीप्ति ने तय कर लिया था कि फिल्में व अभिनय उनका शौक है। तभी से वे सपना देखने लगी थी कि कभी उन्हें भी लोग पर्दे पर देखेंगे। दीप्ति नवल ने फिल्मों के बारे में सोचना शुरू किया तो उसके लिए तैयारी भी की।

बचपन में उन्हों कथक का प्रशिक्षण लिया। लेकिन फिल्मों में अभिनय करते हुए उन्हें कभी नृत्य प्रतिभा को प्रदर्शित करने का मौका नहीं मिला, जिसको लेकर उन्हें इसका अफसोस भी है।

यात्रा-वृत्तांतों से बताया तजुर्बा

Deepti Naval ने अपने कैमरे के साथ हिमाचल और लद्दाख क्षेत्र सहित अनेक स्थानों की अनेक यात्राएं की हैं। इनके यात्रा-वृत्तांतों को उन्होंने लिखा है। पेंटिंग की है और अपनी पेंटिंग और फोटो की प्रदर्शनी लगा चुकी हैं, यह सिलसिला जारी है। सामाजिक क्षेत्र में अपने विचारों और कार्यों के द्वारा दीप्ति दखल कर रही हैं।

मौजूदा शिक्षा-व्यवस्था के प्रति भी उनके मन में क्षोभ है। उनका मानना है कि प्राथमिक शिक्षा को बच्चों पर किताबों का बोझ लादने की बजाय वातावरण की व्यावहारिक शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।

Deepti Naval: शिक्षा को लैंगिक विषमताओं को दूर करना चाहिए। बच्चों को पढऩे के लिए और अधिक विषय विकल्प दिए जाने चाहिएं। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक ट्रस्ट भी बनाया है।

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