Mahakumbh 2025: आस्था और अध्यात्म का विश्व का सबसे विशाल समागम पावन महाकुंभ
Mahakumbh 2025: आस्था और अध्यात्म का विश्व का सबसे विशाल समागम पावन महाकुंभ
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Mahakumbh 2025 News: आचार्य दीप चन्द भारद्वाज। महाकुंभ का आयोजन पृथ्वी पर तीर्थ यात्रियों का सबसे वृहद समागम माना जाता है। महाकुंभ (Mahakumbh 2025) हमारी दिव्य सनातन संस्कृति का ऐसा पावन आयोजन है जो अपने आप में खगोल, विज्ञान, ज्योतिष, अध्यात्म, अनुष्ठानिक परंपराओं और सामाजिक तथा सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के विज्ञान को समावेशित करता है।

26 फरवरी महाशिवरात्रि तक रहेगा महाकुंभ

सनातन धर्म के इस विराट उत्सव का आयोजन तीर्थराज प्रयागराज में इस बार 13 जनवरी पौष पूर्णिमा से आरंभ होकर 26 फरवरी महाशिवरात्रि पर्व तक रहेगा। हमारे धार्मिक शास्त्रों में भी कुंभ की इस विराट और प्राचीन स्वर्णिम परंपरा का उल्लेख प्राप्त होता है।

हमारे पौराणिक साहित्य में वर्णन आता है कि देव और असुरों द्वारा जब समुद्र मंथन किया गया तब उस अमृत कुंभ से अमृत जो बूंदे गिरी वह पृथ्वी के प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक के संगम स्थान पर गिरी थीं। तीर्थों में संगम को सभी तीर्थों का अधिपति माना गया है इस संगम पर ही अमृत की बूंदे गिरी थीं।

देव और असुरों में बारह दिव्य दिनों तक यह संघर्ष चला था इसलिए देवताओं का एक दिन मनुष्य के एक वर्ष के बराबर माना जाता है अतः 12 वर्ष बाद महाकुंभ का आयोजन शास्त्रसम्मत माना गया है।

प्रयागराज की उत्कृष्टता का वर्णन

पद्म पुराण में भी इस कुंभ (Mahakumbh 2025) के महत्व को वर्णित किया गया है मत्स्य पुराण में महर्षि मारकंडेय ने प्रयागराज की उत्कृष्टता का वर्णन करते हुए कुंभ स्थान प्रयागराज को यज्ञ और ऋषि भूमि कहा है जो पुण्य और आध्यात्मिक लाभ को प्रदान करने वाली मानी गई है।

रामचरितमानस में भी तीर्थराज प्रयागराज को पवित्र संगम का स्थान माना गया है। सामान्य कुंभ 3 वर्ष बाद, अर्ध कुंभ 6 वर्ष बाद, पूर्ण कुंभ 12 वर्ष बाद और महाकुंभ 144 वर्ष बाद आता है। महा तीर्थ प्रयागराज में गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम का पवित्र स्थान इस भव्य और दुर्लभ महाकुंभ के आयोजन का साक्षी बनेगा।

12 पूर्ण कुंभ के पश्चात महाकुंभ का योग

12 पूर्ण कुंभ के पश्चात महाकुंभ (Mahakumbh 2025) का योग बनता है। खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेल मकर संक्रांति के दिन आरंभ होता है। ज्योतिष विद्या के अनुसार जब सूर्य चंद्रमा मकर राशि में तथा बृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करते हैं तब यह आयोजन प्रयागराज में निश्चित होता है।

हमारे शास्त्रों में सूर्य और चंद्रमा मानव बुद्धि तथा मन का प्रतिनिधित्व करते हैं। बृहस्पति आध्यात्मिक गुरु है इसलिए तीनों ग्रहों का साथ आना आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति का प्रतीक है। प्रयागराज जहां गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है।

महाकुंभ सूक्ष्म साधना का प्रतीक

हमारे मनीषियों का चिंतन है कि सरस्वती जो ज्ञान बुद्धि का प्रतीक है इसी पुनीत महाकुंभ के अवसर पर प्रकट होती है। आस्था का यह महाकुंभ सूक्ष्म साधना का भी प्रतीक है। साधक तथा उपासक इस अवसर पर सूक्ष्म साधना के द्वारा सुषुम्ना, इडा, पिंगला इन नाडियों पर ध्यान केंद्रित करके आनंद की अनुभूति करते हैं।

ऐसे पावन अवसर पर गंगा का पानी औषधि कृत एवं अमृतमय हो जाता है। इन दिनों यहां का वातावरण दिव्य, अद्भुत तरंगों के स्पंदनों से भर जाता है जिसका सात्विक प्रभाव वहां के जल पर पड़ता है। संगम के स्थान पर नदियों के जल में इस दिन विशेष प्रकार की दिव्यता आ जाती है।

कुंभ का स्नान परम आवश्यक माना गया

आध्यात्मिक दृष्टि से महाकुंभ (Mahakumbh 2025) के इस पावन अवसर पर ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है। तन मन एवं बुद्धि के दोषों के निवृत्ति के लिए तीर्थ और कुंभ का स्नान परम आवश्यक माना गया है। अमृत की प्राप्ति के लिए होने वाला देवासुर संग्राम प्रतिपल हमारे भीतर घटित हो रहा है।

महाकुंभ के दार्शनिक महत्व को स्पष्ट करते हुए संत तुलसी दास कहते हैं कि वेद समुद्र हैं ज्ञान मंदराचल है और संत देवता हैं जो उस वेद रूपी समुद्र को मथ कर कथा रूपी अमृत निकलते हैं उस अमृत में ही शाश्वत भक्ति और आध्यात्मिक रस की मधुरता निवास करती है।

Mahakumbh 2025: शाश्वत अमृत की अनुभूति

Mahakumbh 2025 का यह है पावन अवसर इसी शाश्वत अमृत की अनुभूति की ओर बढ़ने का अवसर प्रदान करता है। कुंभ का अर्थ है मिट्टी का घड़ा। मनुष्य का शरीर भी पार्थिव अर्थात पृथ्वी तत्व प्रधान है।

यह मनुष्य शरीर रूपी कुंभ जो कि सांसारिक वासनाओं, दुर्विकारों दुर्भावना, तामसिकता कुसंस्कारों रूपी मल से भरा हुआ है उस को रिक्त करने का सर्वोत्तम स्थल यह महाकुंभ मेला है।

पवित्र त्रिवेणी के संगम पर लगने वाला यह महाकुंभ हमारी सनातन राष्ट्रीयता का प्रतीक है। पुण्यार्जन के इस महापर्व पर सभी पीठों के शंकराचार्य, तेरह अखाड़ों के साधु महामंडलेश्वर, शैव, वैष्णव,शाक्त, अघोरी, उदासी, जैन, बौद्ध पूरे भारतवर्ष एवं विश्व से श्रद्धालु एवं उपासक यहां आकर परमार्थ तत्व पर विचार करते हैं।

महाकुंभ (Mahakumbh 2025) संस्कृतियों परंपराओं भाषाओं का एक जीवंत मिश्रण है जो एक लघु भारत को प्रदर्शित करता है। त्रिवेणी संगम पर साधु संतों के द्वारा किया जाने वाला शाही स्नान इस महाकुंभ पर्व का आकर्षक दृश्य होता है।

पौष पूर्णिमा, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी और महाशिवरात्रि की दिव्य तिथियों पर प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर स्नान करके अपने आप को कृत कृत्य मानते हैं।

धार्मिक एकता को सुदृढ़ करता है

आस्था के इस विशाल पर्व में सनातन संस्कृति का शाश्वत सार निहित है। विभिन्न प्रकार के धार्मिक संप्रदायों अखाड़ों, पंथों से जुड़े सन्यासी गण इस पावन अवसर पर सनातन की विराटता को नमन करते हैं। महाकुंभ का यह अवसर भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक एकता को सुदृढ़ करता है।

बिना किसी आमंत्रण के लाखों करोड़ों आस्था एवं श्रद्धा से परिपूर्ण सनातन संस्कृति के पिपासुओं को यह महाकुंभ अपनी और आकर्षित करता है।

लोग पुण्य की प्राप्ति के लिए सांसारिक हानियों, आपत्तियों की उपेक्षा करते हुए व्याकुल भाव से इस पावन संगम त्रिवेणी तट पर आते हैं धर्म तत्व की शाश्वत अनुभूति के लिए आत्मीय स्वजन सुख आदि आकर्षणों को त्यागकर चिंतन मनन करते हैं।

महाकुंभ में कल्पवास का विशेष महत्व

Mahakumbh 2025: आध्यात्मिक लाभों को प्राप्त करने के लिए महाकुंभ में कल्पवास का विशेष महत्व है। यह हमारी वैदिक परंपरा है कल्प का अर्थ है लंबी अवधि के लिएऔर वास का अर्थ है निवास करना।

अर्थात साधक गण इस अवसर पर पूर्ण ब्रह्मचर्य, यम, नियम, सात्विक आहार, ब्रह्म मुहूर्त में निरंतर ध्यान ज्ञान दान और स्नान के माध्यम से परमार्थ चिंतन में अनुरक्त रहते हैं।

महाकुंभ मेला आध्यात्मिक अनुष्ठानों का जीवंत उदाहरण है। पूरे विश्व में आस्था, श्रद्धा शांति, स्नेह से परिपूर्ण अनुशासनबद्ध ऐसा विराट एवं भव्य धार्मिक आयोजन अन्यत्र मिलना दुर्लभ है।

भारत की सुदृढ़ सामाजिक समरसता का यह प्रत्यक्ष उदाहरण है। इस महाकुंभ में भारत के स्वर्णिम सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक चरमोत्कर्ष के दर्शन होते हैं।

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