Rajinder Singh Ji Maharaj परमात्मा के अनंत प्रेम पर क्‍या बोले, जानिए
Rajinder Singh Ji Maharaj परमात्मा के अनंत प्रेम पर क्‍या बोले, जानिए
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Rajinder Singh Ji Maharaj on Gods love: प्रत्येक इंसान चाहता है कि वह औरों से प्रेम करे और दूसरे भी उससे प्रेेम करें। मनोवैज्ञानिक आधार पर जब इंसान की बुनियाद ज़रूरतों जैसे भोजन, वस्त्र, मकान और सुरक्षा की बात की जाती है, तब उसमें प्रेम की ज़रूरतों को भी शामिल किया जाता है।

अक्सर लोग बाहरी दुनिया में माता-पिता, भाई-बहन और रिश्तेदारों से प्रेम की उम्मीद करते हैं। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं तो वे अपने दोस्तों से प्रेम पाना चाहते हैं। युवा अवस्था मंे वे अपने जीवन साथी, बच्चों और सहकर्मियों से प्रेम पाना चाहते हैं।

सभी प्रेम अस्‍थायी: Rajinder Singh Ji Maharaj

संत-महापुरुष हमें समझाते हैं कि इस दुनिया के सभी प्रेम अस्थायी हैं क्योंकि यह अक्सर यह देखा गया है कि समय बीतने पर रिश्तों में अनबन हो जाती है, बच्चे अपने कार्यों की वजह से दूर चले जाते हैं और हमारे बड़े बुजुर्ग माता-पिता आदि धीरे-धीरे इस दुनिया से चल बसते हैं। ऐसी स्थिति में इस दुनियावी प्रेम के खोने पर हम दुःखी हो जाते हैं।

Rajinder Singh Ji Maharaj कहते हैं इस प्रेम के खोने पर अक्सर हम दुःखों से राहत पाने के लिए परमात्मा की तरफ रुख करते हैं। प्रभु जब हमारी करूण पुकार को सुनते हैं, तब वे हमें किसी ऐसी हस्ती (सत्गुरु) के पास भेजते हैं, जो हमें ये बता सके कि पिता-परमेश्वर का स्थायी प्रेम हमारे अंतर में मौजूद है, जोकि दुनियावी प्रेम से कहीं ज्यादा है। हमारे सत्गुरु हमें परमात्मा के इस अनंत प्रेम से जोड़ देते हैं।

युगों-युगों से आध्यात्मिक गुरु इस धरा पर आते रहे हैं, जिन्होंने हमें अनंत प्रेम को पाने का मार्ग दिखाया है। वे हमें ध्यान-अभ्यास का तरीका सिखाते हैं, जिससे हम अपने अंतर में पिता-परमेश्वर के प्रेम को पा सकते हैं। हम इन आँखों से परमात्मा को नहीं देख सकते, आध्यात्मिक सत्गुरु हमें अंतर की आँखों से परमात्मा को अनुभव करने का मार्ग दिखाते हैं।

पिता-परमेश्वर के प्रेम का अनुभव

Rajinder Singh Ji Maharaj कहते हैं जब हम उनके बताए रूहानी रास्ते पर चलते हैं, तब हम अपने अंतर में परमात्मा के प्रेम का अनुभव करते हैं। परमात्मा का अनुभव बुद्धि के ज़रिये नहीं किया जा सकता। परमात्मा प्रेम है, हमारी आत्मा उनका अंश होने के नाते प्रेम है और परमात्मा को पाने का रास्ता भी प्रेम है।

पिता-परमेश्वर के प्रेम का अनुभव करने के लिए हमें मन-माया की वह सारी परतें हटानी होंगी, जो हमें उस दिव्य-प्रेम का अनुभव करने से दूर रखती हैं। जब हम आध्यात्मिक सत्गुरु के पास जाते हैं तो वे हमें परमात्मा के प्रेम का अनुभव कराते हैं क्योंकि उनसे रूहानी किरणें निकलती हैं जोकि हमारी आत्मा तक पहुँचती हैं।

Rajinder Singh Ji Maharaj ने कहा कि इस दुनिया में जब हम किसी भी वक्ता से कुछ सुनते हैं तो हमें बौद्धिक ज्ञान प्राप्त होता है और हम सिर्फ एक विषय के बारे में सीखते हैं। पर जब हम आध्यात्मिक गुरु के पास जाते हैं तब हम बौद्धिक जानकारी से कुछ अधिक सीखते हैं। सत्गुरु की आँखों से परमात्मा का प्रेम झलकता है जिससे हमारी आत्मा को उभार मिलता है।

चेतनता का यह आनंददायक अनुभव

Rajinder Singh Ji Maharaj ने कहा कि सत्गुरु की उपस्थिति में स्वाभाविक रूप से यह उभार हमें महसूस होता है। इस उभार देने वाली ताकत से हमारा ध्यान शरीर में उठकर शिवनेत्र पर टिक जाता है। सत्गुरु के रूहानी उभार से हमें अंतर में स्फूर्ति मिलती है, जो हमें चेतनता से जोड़ती है और हमारी सुरत की धारा इस भौतिक संसार एवं शरीर से हटकर परमात्मा की तरफ जागरूक होती है।

चेतनता का यह आनंददायक अनुभव हमारी आत्मा को उभार देता है। हम प्रभु के प्रेम से भरपूर हो जाते हैं तथा उस दिव्य-आनंद को महसूस करते हैं और उसी में रहना चाहते हैं।

Rajinder Singh Ji Maharaj ने कहा कि रूहानी आनंद से भरपूर होने पर हमारा मन इस दुनिया के आकर्षणों से दूर हो जाता है जो हमें आत्म-साक्षात्कार और परमात्मा-प्राप्ति से रोकते हैं। परमात्मा के प्रेम की शक्ति इतनी प्रबल होती है कि हम कभी न खत्म होने वाली शांति की अवस्था में पहुँच जाते हैं। फिर हमें यह अनुभव हो जाता है कि परमात्मा का यह अनंत-प्रेम इस संसार के किसी भी प्रेम से अधिक उत्तम और परिपूर्ण है।

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