Sant Rajinder on feeling of gratitude: हम लोग सोचते हैं कि परमात्मा हमसे बहुत दूर हैं क्योंकि हमें लगता है कि पिता-परमेश्वर किसी दूर स्थान पर मौजूद हैं, जो पृथ्वी पर हमारे जीवन के बारे में पूरी तरह से बेपरवाह हैं। हमें आश्चर्य होता है कि वे तो इतने व्यस्त हैं, उन्हें हमारे बारे में सोचने का समय कैसे होगा?
वे हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देंगे?
Feeling of gratitude: पृथ्वी पर करोड़ों लोग रहते हैं, क्या वे हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देंगे? परंतु हम जैसा सोचते हैं असलियत बिल्कुल इसके विपरीत है। हम जो कुछ भी करते हैं उसके बारे में परमात्मा सब जानते हैं और हमारे माता-पिता से भी ज्यादा हमारी परवाह करते हैं। पिता-परमेश्वर का दरवाज़ा हमेशा-हमेशा के लिए खुला है।
Feeling of gratitude: यदि हम दुनिया भर के लोगों की सभी प्रार्थनाएं सुनें तो हम उनमें समानता ही पाएंगे। हमने कई लोगों को पिता-परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए सुना व देखा होगा।
हम यह भी देखते हैं कि वे उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर भी देते हैं लेकिन यह इंसान का स्वभाव है कि जिस क्षण हमें जवाब नहीं मिलता या उस समय नहीं मिलता जब हम चाहते हैं, या वैसा नहीं मिलता जैसा हम चाहते हैं, तो हम निराश या दुःखी हो जाते हैं। यह किसी एक व्यक्ति के बारे में नहीं है, बल्कि ज़्यादातर लोगों के साथ ऐसा ही होता है।
Feeling of gratitude: शुक्राना एक विशेष गुण
शुक्राना (Feeling of gratitude) एक विशेष गुण है, जिसकी कमी बहुत से लोगों में है। हम किसी के लिए सौ काम कर लें लेकिन यदि वह व्यक्ति उस एक चीज़ पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है जो हमने नहीं किया या उसकी पसंद के अनुसार नहीं किया।
ऐसे ही यदि हम अपने बच्चों को सैंकड़ों खिलौने खरीदकर दें लेकिन अगर हम एक भी खिलौना उनसे वापिस ले लेते हैं तो वे हमसे शिकायत करते हैं। हम किसी के लिए अनेक स्वादिष्ट भोजन बना सकते हैं लेकिन वह व्यक्ति सिर्फ उस भोजन पर ध्यान केन्द्रित करता है जो पकवान हमसे जल गया था।
Feeling of gratitude: ऐसे ही यदि हम किसी के जन्मदिन पर हर साल सुंदर ग्रीटिंग कार्ड भेजते हैं लेकिन अगर हम किसी एक साल कार्ड भेजना भूल गए तो वह उस एक साल की शिकायत करते हैं। जहाँ हम काम करते हैं वहाँ यदि हम हजारों पेज टाईप कर लें लेकिन हम कभी भी प्रशंसा का एक शब्द भी नहीं सुनते लेकिन यदि अगर हमसे टाईपिंग में कोई गलती हो जाए तो उस पर हमें टोका जाता है।
इसी तरह परमेश्वर हमें सप्ताह दर सप्ताह, साल दर साल हमेशा अपना आशीर्वाद देते हैं लेकिन हमारा ध्यान केवल उस एक प्रार्थना पर केन्द्रित हैं जिसका उत्तर नहीं दिया गया।
लोग केवल एक चीज़ पर ध्यान केन्द्रित क्यों करते हैं
Feeling of gratitude: इतने सारे लोग केवल एक चीज़ पर ध्यान केन्द्रित क्यों करते हैं जो उन्हें प्राप्त नहीं होती हैं बजाय इसके जो कुछ भी उन्हें प्राप्त हुई हैं? समस्या वर्तमान क्षण में जीने की गलत अवधारणा के कारण है। वर्तमान क्षण में जीने का अर्थ है अपने मन को शांत करना और अतीत व भविष्य के विचारों को भूल जाना।
लेकिन अक्सर लोग वर्तमान क्षण में तभी जीते हैं जब यह उनकी वर्तमान इच्छाओं से संबंधित होता है। लोगों को ज्यादातर जो कुछ भी मिलता है उसके लिए वे शुक्राना करने का भाव नहीं रखते हैं। वे केवल वर्तमान क्षण की अपनी इच्छाओं को पूरा करने में ही लगे रहते हैं।
हमारा मन इस दुनिया की इच्छाओं से भरा पड़ा है। यह हमेशा हमें कोई न कोई इच्छा भेजता ही रहता है। हमारा मन हमें भुला देता है कि हमें अतीत में क्या प्राप्त किया था और इस समय जो हम चाहते हैं केवल उस पर ही हमारा ध्यान केन्द्रित रखता है।
हमारा मन हमें वह सब कुछ भुला देता है
अगर वह हमें नहीं मिलता जो हम चाहते हैं तो हमारा मन हमें वह सब कुछ भुला देता है जो हमें इससे पहले मिला है। इस तरह मन हमें शुक्राना करने से रोकता है। मन हमें दूसरों लोगों से प्राप्त होने वाली चीज़ों के लिए आभारी होने से रोकता है और यह हमें पिता-परमेश्वर से मिलने वाली चीज़ों के लिए भी आभारी होने से रोकता है।
जब हम अपने अंदर शुक्राना (Feeling of gratitude) करने का भाव नहीं रखते तो हमारा मन इसका आनंद क्यों लेता है? जब हम दूसरों से या पिता-परमेश्वर से जो कुछ भी प्राप्त करते हैं, उसके लिए शुक्राना नहीं रखते हैं तो हम देखते हैं कि हम व्याकुलता की स्थिति में होते हैं। हम हर समय दुःखी और परेशान रखते हैं।
Feeling of gratitude: उदासी और चिंता की इस स्थिति में हम यह सोचने में लगे रहते हैं कि हम इतना बुरा महसूस क्यों कर रहे हैं? जब हम ऐसी उदासी की अवस्था में होते हैं तो तब हमारा मन शांत नहीं होता। हमारा मन यही सोचता है कि हमें क्या प्रार्थना की और मुझे क्या नहीं मिला? जब हम ऐसी स्थिति में होते हैं तो हम अपने दिमाग को शांत नहीं कर पाते हैं और विचारों के भंवर में फंस जाते हैं।
हमें पिता-परमेश्वर के प्रति शुक्राना (Feeling of gratitude) व्यक्त करने की आवश्यकता है। यदि हम उन सभी देनों को देखें जो पिता-परमेश्वर ने हमें दी हैं तो हम पाएंगे कि हम कभी भी पर्याप्त रूप से परमेश्वर का धन्यवाद नहीं करते। जब भी हमें लगे कि पिता-परमेश्वर ने हमें कछ नहीं दिया है या हमारी प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया है तो एक क्षण के लिए हमें रूक जाना चाहिए और उन सभी लाखों चीजों के बारे में विचार करना चाहिए जो पिता-परमेश्वर ने अतीत हमें दी हैं।
एक शांत और स्थिर मन की आवश्यकता
Feeling of gratitude: जब हम शुक्राने के भाव (Feeling of gratitude) में जीते हैं तो हम हमेशा शांत और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। यदि हमारे अंदर शुक्राने के भाव नहीं आते हैं तो हमें इस बात की पूरी जानकारी होनी चाहिए कि यह सब हमारे मन की एक चाल है। हमें यह महसूस करने की आवश्यकता है कि यदि हम मन के आगे झुक जाते हैं तो हम कभी शांत और खुश नहीं रह पाएंगे क्योंकि हम मेषा अपने उदास विचारों के बारे में सोचते रहेंगे।
हमें पिता-परमेश्वर के पास वापिस जाने और ध्यान-अभ्यास में प्रगति करने के लिए एक शांत और स्थिर मन की आवश्यकता है। एक बार जब हम पिता-परमेश्वर के पास वापिस चले जाते हैं तो हमें और कुछ भी नहीं चाहिए क्योंकि हम अपने स्त्रोत में विलीन हो जाते हैं। जब हम प्रेम और स्थायी सुख के सागर से एकमेक हो जाते हैं तो हम हमेशा अंदर से शांत और संतुष्ट रहेंगे।
आईये! हम मन के कारण उत्पन्न होने वाले दुःख के क्षणों के बदले अपने अंदर शुक्राना (Feeling of gratitude) करने का भाव विकसित करें ताकि हम इस अस्थायी दुनिया से ऊपर उठकर पिता-परमेश्वर की गोद में हमेशा-हमेशा के सुख को पा सकें।