Sant Rajinder Singh Ji Maharaj on God: जानें प्रभु के चिंतन पर क्या बोले संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
Sant Rajinder Singh Ji Maharaj on God: जानें प्रभु के चिंतन पर क्या बोले संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
TimesScope WhatsApp Channel

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj on God: दुनियाभर में सभी लोग किसी न किसी रूप में पिता-परमेश्वर की पूजा करते हैं। हर धर्म की अपनी-अपनी उपासना पद्धति होती है, हालांकि सभी का मूल उद्देश्य केवल प्रभु का ध्यान करना है।

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj on God: अधिकांश लोग यह दिखाते हैं कि वे पूजा के स्थान पर सेवाओं में भाग लेकर पिता-परमेश्वर को याद करते हैं और उनसे प्यार करते हैं। विभिन्न धर्मों और शास्रों के अध्ययन से यह पता चलता है कि प्रभु को पाने का मार्ग सिर्फ इंसान के अंदर जाकर ही मिलता है।

जिसके लिए हमें अपने शरीर और मन को शांत करना पड़ता है। प्रभु का अनुभव हम ध्यान-अभ्यास के ज़रिये कर सकते हैं। ध्यान-अभ्यास करते समय हमें बाहर से ध्यान हटाने की ज़रूरत है।

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj on God

पिता-परमेश्वर आनंद, चेतनता और प्रेम के महासागर हैं। प्रेम, आनंद और चेतनता के इस महासागर के साथ हमारा मिलन तब होता है जब हम ध्यान-अभ्यास में बैठते हैं और अपने अंतर में प्रभु के साथ बात करते हैं।

ध्यान-अभ्यास करने के लिए एक शांत जगह ढूंढकर हम आराम से बैठते हैं, जिसमें हम ज्यादा देर तक स्थिर रह सकें। हम अपनी आँखें बंद करते हैं और अपना ध्यान दो भौहों के बीच ‘शिवनेत्र’ पर एकाग्र करते हैं, जिसे तीसरी आँख या दिव्य-चक्षु भी कहा जाता है।

ध्यान-अभ्यास की कला

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj on God: मन को स्थिर रखने के लिए हम प्रभु के नामों का जाप करते हैं। ध्यान-अभ्यास की इस कला को हम वक्त के किसी पूर्ण गुरु से सीख सकते हैं, जो हमें हमारे भीतर प्रभु की ज्योति और श्रुति का अनुभव कराते हैं। तभी हम अपने अंतर आध्यात्मिक यात्रा करके प्रभु के अंतरीय मंडलों का पता लगा सकते हैं।

जब भी हम कुछ नया सीखना चाहते हैं तो हम शिक्षक के पास जाते हैं। ठीक उसी प्रकार यदि हमें आध्यात्मिक विद्या में निपुण होना है तो हमें किसी पूर्ण गुरु के चरण-कमलों में जाना ही होगा क्योंकि जो प्रभु के दिव्य प्रकाश का अनुभव वो हमें देते हैं, वो हमें किताबें नहीं दे सकती।

प्रभु के प्रति सच्चा प्यार और चिंतन

प्रभु के प्रति सच्चा प्यार और चिंतन ध्यान-अभ्यास के द्वारा प्रभु को पाना है। प्रतिदिन ध्यान-अभ्यास में समय देने से हमें अपने सच्चे स्वरूप अर्थात आत्मा के बारे में जानने में मदद मिलती है। जब हम अपने भीतर प्रवेश करते हैं तो हमें पता लगता है कि हमारे अंदर प्रभु का प्रकाश ही प्रकाश है।

उसके बाद ही हमें यह अनुभव होता है कि प्रभु का जो प्रकाश हमारे अंदर है, वही दूसरों में भी है तो हमें दूसरे कोई और नहीं लगते। इस दुनिया के बाहरी मतभेद जो इंसान को इंसान से अलग करते हैं, धीरे-धीरे हमारे अंदर से मिटने लगते हैं।

प्रभु के चिंतन का अर्थ

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj on God: हम सभी लोगों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करते हैं और उनके भीतर भी प्रभु के प्रकाश को देखते हैं। इसके साथ ही हम सभी लोगों का सम्मान करते हैं, भले ही वो हमसे अलग क्यों न दिखते हों।

प्रभु के चिंतन का अर्थ (Sant Rajinder Singh Ji Maharaj on God) है सभी लोगों से प्यार करना और हर एक के प्रति दयालुता का व्यवहार करना तथा साथ ही साथ एक नैतिक जीवन जीना, जिसमें हम किसी को भी चोट न पहुँचाएं। सभी को प्रभु के एक ही परिवार के सदस्यों के रूप में प्यार करें और निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करें।

आईये! हम प्रभु से प्यार करें और उनका चिंतन करें। प्रभु से प्रेम करना, ध्यान-अभ्यास में बैठकर प्रभु को अपने भीतर खोजना है। अगर हम ऐसा करेंगे तो हम निश्चित रूप से अपने भीतर ही प्रभु को पाएंगे। (Sant Rajinder Singh Ji Maharaj on God)

Premanand Ji Maharaj on husband wife: पति-पत्नी के रिश्ते पर जानें क्या बोले प्रेमानंद जी महाराज