Mahadev and glory of Mahakumbh: डॉ दिलीप अग्निहोत्री: समुद्र मंथन में अमृत और विष दोनों प्रस्फुटित हुए थे। अमृत की बूंदे जहां गिरी,वहां कुंभ के आयोजन होने लगे। सृष्टि के कल्याण हेतु विष को भगवान महादेव (Mahadev) ने अपने कंठ में धारण किया। वह नीलकंठ रूप में भी आराध्य हो गए।
Mahadev की महाशिवरात्रि पर अंतिम अमृत स्नान
भव्य श्री काशी विश्वनाथ धाम के निर्माण के बाद प्रयागराज में यह पहला महाकुंभ है। वैसे भी महाकुंभ शुभारंभ के साथ ही काशी और अयोध्या धाम तक जन सैलाब परिलक्षित हो रहा है। महाकुंभ का अंतिम अमृत स्नान महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2025) है। प्रयागराज के साथ काशी की महिमा भी सर्वविदित है।
महाकुंभ और महाशिवरात्रि का संयोग भी विलक्षण है। प्रयागराज को तीर्थराज कहा गया। उधर काशी विश्व की सर्वाधिक प्राचीन नगरी है। भारतीय ज्ञान विज्ञान चिंतन दर्शन यहां के गंगा तट पर समृद्ध होता रहा। विदेशी आक्रांताओं के समय इस नगरी को भी आपदाओं व विध्वंश का सामना करना पड़ा।
विरासत व धरोहर जीवंत बनी
इसके बाबजूद यहां की प्राचीन विरासत व धरोहर जीवंत बनी रही। ढाई सौ वर्ष पहले महारानी अहिल्याबाई ने काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्रूथान कराया था। वर्तमान सरकार ने दिव्य काशी भव्य काशी अभियान चलाया। अयोध्या दीपोत्सव और काशी में देव दीपावली के वैश्विक कीर्तिमान कायम हुए।
महाकुंभ प्रत्येक बारह वर्षों में एक बार आयोजित होने वाला सबसे बड़ा धार्मिक पर्व है। इसका आयोजन विशेष खगोलीय योग और ग्रहों की स्थिति पर आधारित होता है। इसका मुख्य आधार सूर्य, चंद्रमा और गुरु ग्रह की स्थिति होती है। जब गुरु ग्रह कुंभ राशि में स्थित होता है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करता है।
चंद्रमा की स्थिति शुभ लग्न को निर्धारित करती है
चंद्रमा की स्थिति भी महाकुंभ के शुभ लग्न को निर्धारित करती है। महाकुंभ माघ मास में होता है। सूर्य,चंद्रमा और गुरु की विशेष स्थिति का महत्व होता है। यह स्थिति पृथ्वी विशेष ऊर्जा का संचार करती है। इस अवधि में कुंभ होता है।प्रयागराज को तीर्थराज कहा जाता है।
क्योंकि यहां स्थित द्वादश माधव और विष्णु पीठ हैं। ये मंदिर भगवान विष्णु के बारह विभिन्न रूपों को समर्पित हैं। श्री आदि वट माधव त्रिवेणी संगम, श्री असि माधव नागवासुकी मंदिर,श्री संकष्ट हर माधव प्रतिष्ठानपुरी, श्री शंख माधव छतनाग मुंशी बागीचा, श्री आदि वेणी माधव अरैल, श्री चक्र माधव अरैली, श्री गदा माधव छिंवकी गांव,
श्री पद्म माधव बीकर देवरिया,श्री मनोहर माधव जॉनसेनगंज, श्री बिंदु माधव द्रौपदी घाट, श्री वेणी माधव दारागंज, श्री अनंत माधव ऑर्डिनेंस डिपो फोर्ट,की बहुत महिमा है।
पद्म और स्कंद पुराण में उल्लेख
पद्म और स्कंद पुराण में इन स्थलों की महिमा का उल्लेख है। महाकुंभ में भारतीय संस्कृति की विराटता विविधता,एकात्मता का प्रत्यक्ष अनुभव होता है। यहां श्रद्धालुओं की संख्य पैसठ करोड़ तक पहुंच रही है। महाकुम्भ में पहली बार देश के तीन पीठों के शंकराचार्य एक ही मंच पर मिले और सनातन के लिए संयुक्त धर्मादेश जारी किया।
धर्मादेश में देश की एकता, अखंडता,सामाजिक समरसता और सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण निर्णय किए गए। उन्होंने महाकुम्भ के भव्य आयोजन के लिए योगी सरकार और प्रशासन को आशीर्वाद भी दिया।
श्रृंगेरी शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी विधु शेखर भारती जी, द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी और ज्योतिष पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज ने परम धर्मसंसद में हिस्सा लिया।
सत्ताइस धर्मादेश भी जारी किए
सनातन संस्कृति की रक्षा और उन्नयन के लिए सत्ताइस धर्मादेश भी जारी किए। इस अवसर पर शंकराचार्य स्वामी सदानंद ने संस्कृत भाषा के महत्व पर जोर दिया। श्रृंगेरी के शंकराचार्य विदुशेखर भारती ने गौ माता को राष्ट्र माता घोषित करने और गौ माता की विशेष रूप से रक्षा करने की बात कही।
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने संस्कृत भाषा के महत्व पर जोर देते हुए सरकार को संस्कृत भाषा के लिए बजट देने पर जोर दिया। धर्मादेश में नदियों और परिवार रूपी संस्था को बचाने के लिए सबको आगे आने का आदेश दिया गया।
धार्मिक शिक्षा को हिंदुओं का मौलिक अधिकार
धार्मिक शिक्षा को हिंदुओं का मौलिक अधिकार बनाने पर भी इसमें जोर दिया गया। यह भी कहा गया कि अपने धार्मिक प्रतीकों को पहचानें और उसकी रक्षा अवश्य करें।
हर विद्यालय में देव मंदिर हो। धर्मादेश के मूल में गौ हत्या पर रोक है और राष्ट्र माता घोषित करने का संकल्प। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष, रविंद्र पुरी ने कहा कि महाकुम्भ को एक भव्य और सुव्यवस्थित आयोजन के रूप में देखा गया।
उन्होंने सरकार, विशेष रूप से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों को रेखांकित किया, जो हर सप्ताह दो बार कुम्भ क्षेत्र का दौरा कर रहे थे।महाकुम्भ आने वाले लाखों श्रद्धालु विंध्याचल वाराणसी और अयोध्या में भी दर्शन-पूजन के लिए पहुंच रहे हैं।
श्रुतिः प्रमाणं स्मृतयः प्रमाणं पुराणमप्यत्र परं प्रमाणम् ।
यत्रास्ति गङ्गा यमुना प्रमाणं स तीर्थराजो जयति प्रयागः ।।
महाकुम्भ में दस लाख से अधिक लोगों ने विधिपूर्वक कल्पवास किया है।
पद्मपुराण के अनुसार पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा एक माह संगम तट पर व्रत और संयम का पालन करते हुए सत्संग का विधान है। महाकुम्भ सनातन धर्म के विराट स्वरूप का प्रतीक बन चुका है।
देश में काशी, प्रयागराज और अयोध्या धाम धार्मिक पर्यटन के सबसे बड़े स्वर्ण त्रिकोण गोल्डन ट्रायंगल के रूप में उभरे हैं। इस गोल्डन ट्रायंगल ने प्रसिद्धि, कमाई और श्रद्धालुओं की संख्या के हिसाब से नये कीर्तिमान बनाये हैं। आस्था का यह सैलाब इस पूरे क्षेत्र में है।
विंध्याचल, काशी और अयोध्या में नए कीर्तिमान स्थापित हुए। महाकुंभ में संख्या किसी भी धार्मिक, सांस्कृतिक या सामाजिक आयोजन में मानव इतिहास की अबतक की सबसे बड़ी सहभागिता बन चुकी है।
Mahadev: इस विराट समागम का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया में केवल भारत और चीन की जनसंख्या ही यहां आने वाले लोगों की संख्या से अधिक है। Mahadev के पर्व पर इस बार प्रयागराज में अलग ही उत्सव देखने को मिलेगा।
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