Rituraj Basant: प्रकृति का महाउत्सव ऋतुराज बसंत
Rituraj Basant: प्रकृति का महाउत्सव ऋतुराज बसंत
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Natures great festival Rituraj Basantअरुण कुमार कैहरबा: बहारों का मौसम प्रकृति का सबसे सुंदर संदेश लेकर फिर से आ गया है। ऋतुओं पर आधारित त्योहारों के इस देश में छह ऋतुएं आती हैं। इनमें से बसंत ऋतु की शुरूआत बसंत पंचमी के त्योहार से होती है।

अपनी विशेषताओं के कारण इसे ऋतुराज (Rituraj Basant) कह कर सम्मानित किया जाता है। उत्तरी भारत में बसंत फरवरी-मार्च और अप्रैल के बीच में अपनी सुंदरता बिखेरता है। देसी महीनों की बात की जाए तो माघ माह की पंचमी से लेकर फागुन और चैत्र महीने बसंत ऋतु के माने गए हैं। फागुन साल का आखिरी महीना है और चैत्र पहला। इस प्रकार देसी पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ बसंत में ही होता है।

प्रकृति का महाउत्सव ऋतुराज बसंत

बसंत ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है। बसंत ऋतु के आगमन के साथ समस्त प्राणीजगत में नवजीवन एवं नवचेतना का संचार होता है। वातावरण में चारों ओर मादकता का संचार होने लगता है तथा प्रकृति के सौंदर्य में निखार आने लगता है।

Rituraj Basant: शरद ऋतु में वृक्षों के पुराने पत्ते सूखकर झड़ जाते हैं लेकिन बसंत की शुरूआत के साथ ही पेड़-पौधों पर नई कोपलें फूटने लगती हैं। नए पत्ते आने लगते हैं। आम बौरों से लद जाते हैं। चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं।

फूलों की सुगंध से धरती का वातावरण महकने लगता है। खेतों में गेहूं की सुनहरी बालें आ जाती हैं। दमकते सरसों के पीले फूलों से भरे खेत देख कर ऐसा लगता है, जैसे प्रकृति ने धरती को पीली चादर से सजा दिया हो। वन में टेसू के फूल आग के अंगारे की तरह लहक उठते हैं।

पेड़ों की हरियाली हमें अपनी तरफ आकर्षित करती है। पेड़ों की डालियों पर फुदकती कोयल कहू-कुहू का राग छेड़ देती है। फूलों पर भौरों का गुंजन और रंग-बिरंगी तितलियों की भागदौड़ से पूरा वातावरण सराबोर हो जाता है।

धरती पर रंग और खुश्बू वातावरण में माकदता का ऐसा संचार करते हैं कि उदास से उदास मन भी प्रफुल्लित हो उठता है। शायद इसी वातावरण को देख कर उर्दू के प्रसिद्ध शायर फिराक गोरखपुरी ने अपनी गज़ल का यह शेर लिखा है-

नौरस गुंचे पंखडिय़ों की नाज़ुक गिरहें खोले हैं
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोले हैं

बसंत (Rituraj Basant) का मौसम जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, आशा और विश्वास जगाता है। जीवन में ऐसा भाव बना रहे इसके लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है और यही कारण है कि इसी ज्ञान की प्राप्ति के लिए बसंत का आगमन विद्या की देवी सरस्वती के पूजन से होता है।

Rituraj Basant के आगमन से ही पृथ्वी में जैसे नए प्राणों का संचार होता है। इस तरह बसंत के आगमन से ही चारों ओर उमंग, उल्लास व खुशी छा जाती है। वास्तव में बसंत का मौसम व्यक्ति को नए सिरे से जीवन शुरू करने का संदेश देता है।

पीछे जो कुछ भी हुआ उसको भूलकर एक नई शुरूआत की दिशा दिखाने का काम बसंत का मौसम करता है। यही कारण है कि इस मौसम में देश भर में कईं तरह के त्यौहार मनाए जाते हंै। राग-रंग और उत्सव मनाने के लिए बसंत ऋतु सबसे बेहतर मानी जाती है।

पतंग देते ऊंचाइयों को छूने की प्रेरणा

Rituraj Basant: इसी मौसम में देश के कईं हिस्सों में पतंगबाजी की जाती है और कामना की जाती है कि जैसे आकाश में पतंग आगे और आगे बढ़ती है वैसे ही हमारा जीवन आगे की ओर बढ़ता जाए और रंग बिरंगे रूप में हम अपने जीवन की नईं ऊचाईयों को छू लें। पतंगोत्सव जीवन में उमंग का संचार करता है। देश का मुख्य त्यौहार होली भी बसंत ऋतु में ही आता है।

होली प्रतीक है-अल्हड़ता का, उमंग का, नए रंगों का। बसंत ऋतु में होली के माध्यम से जीवन में उत्साह का संचार होता है। भारतीय संगीत, साहित्य और कला में इसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। फिल्मों में भी बहार के गीतों की कमी नहीं है। संगीत में एक विशेष राग बसंत के नाम पर बनाया गया है-जिसे राग बसंत कहते हैं। बसंत राग पर चित्र भी बनाए गए हैं। इस मौसम में रसिक लोग गायन, वाद्य एवं नृत्य में विभोर हो जाते हैं।

बसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया

पौराणिक कथाओं के अनुसार बसंत (Rituraj Basant) को कामदेव का पुत्र कहा गया है। प्रकृति के किसी भी कण में अगर सरसता है और वह कहीं दबी-छिपी पड़ी है तो बसंत उसमें ऊर्जा का संचार कर देता है। बसंत निर्जीव को सजीव बनाकर फूट पड़ता है। बसंत उत्सव है-सम्पूर्ण प्रकृति में प्राण रूपी ऊर्जा के विस्फोट का।

Rituraj Basant सृजनात्मक शक्ति का प्रतीक

Rituraj Basant: यह प्रतीक है-सृजनात्मक शक्ति के नव पल्लवन का। आगे आने वाली स्कूली परीक्षाओं के संदर्भ में बात करें तो पढऩे के लिए भी यह मौसम बेहद अनुकूल है। विद्यार्थियों के लिए तो यही संदेश है कि वे खुशनुमा वातावरण का लाभ उठाते हुए पढ़ाई में जुट जाएं और परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करें।

बसंत के मौसम (Rituraj Basant) में हमारे शरीर के पाँचों तत्व अपना मोहक रूप दिखाते हैं। जिस सर्दी के कारण ठिठुरन थी-अब वह ठिठुरन नहीं रही और खुले आकाश में उडऩे का मन करता है। किसान अपने खेतों में पीले फूल देखकर खुश होता है तो धनी व्यक्ति प्रकृति के इस नए सौंदर्य में खो जाना चाहता है। वहीं निर्धन व्यक्ति ऐसे मौसम (Rituraj Basant) में ठंड से निजात पाकर खुश होता है।

लोककवि नज़ीर अकबराबादी ने इसे अपनी नज़्म में कुछ इस तरह कहा है-

जहां में आयी बहार और खिजां के दिन भूले
चमन में गुल खिले और वन में राय वन फूले

गुलों ने डालियों के डाले बास में झूले
समाते फूल नहीं पैरहन में अब फूले

दिखा रही है अजब तरह की बहार बसंत
अजब बहार से आयी है अबकी बार बसंत

कहीं दुकान सुनहरी लगा के बैठे हैं
बसंती जोड़े पहन और पहना के बैठे हैं

गरीब सरसों के खेतों में जाके बैठे हैं
चमन में बाग में मजलिस बनाके बैठे हैं

पुकारते हैं अहा! हा! री जर निगार बसंत
अजब बहार से आयी है अबकी बार बसंत

कहीं बसंत गवा हुरकियों से सुनते हैं
मजीरा तबला व सारंगियों से सुनते हैं

कहीं खाबी व मुंहचंगियों से सुनते हैं
गरीब ठिल्लियों और तालियों से सुनते हैं

बंधा रही है समद का हर एक तार बसंत
अजब बहार से आयी है अबकी बार बसंत

इस प्रकार इस मौसम की मादकता से कोई भी अछूता नहीं रहता है। निराला बसंत की अनंतता के प्रति अपना परम विश्वास कुछ इस प्रकार प्रकट करते हैं-

अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है

मेरे वन में मृदुल वसंत
अभी न होगा मेरा अंत

तो आईए हम सब भी प्रकृति के इस महाउत्सव (Rituraj Basant) का आनन्द लें।

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