Sant Rajinder Singh Ji Maharaj: जानिए प्रेम पर क्‍या बोले संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
Sant Rajinder Singh Ji Maharaj: जानिए प्रेम पर क्‍या बोले संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
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Sant Rajinder Singh Ji Maharaj: प्रेम क्या है? यह समझना अधिकतर लोगों की सबसे बड़ी दुविधा होती है। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके समाधान की खोज प्राचीन काल से चली आ रही है। प्रेम के बारे में लाखों कविताएँ व पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं और हर युग में आए दार्शनिकों ने भी प्रेम के स्वरूप की व्याख्या करने के अनेक प्रयत्न किए हैं। आइए जानते हैं इस पर संत राजिंदर सिंह जी महाराज क्‍या कहते हैं?

प्रेम क्या है?

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj कहते हैं ‘प्रेम’ शब्द का प्रयोग हममें से अधिक लोग भिन्न-भिन्न संबंधों के प्रति अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए करते हैं। जैसे माता-पिता और बच्चे में प्यार होता है तो भाई-बहन और रिश्तेदारों का भी आपस में प्यार होता है। मित्रों का आपस में प्रेम होता है।

इसके अलावा हमें अपने देश के प्रति भी प्रेम होता है तथा बहुत सी बार हमें अपनी संपत्ति के साथ भी लगाव होता है। ऐसा पाया जाता है कि कुछ देशों में लोगों को अपने पालतू जानवरों से भी स्नेह होता है।

प्रेम पर क्‍या बोले Sant Rajinder Singh Ji Maharaj

आमतौर पर जब प्रेम के बारे में विचार किया जाता है तो हम स्त्री-पुरुष के आपसी प्रेम के बारे में सोचते हैं। इसके अलावा हम कई बार सारी मानवजाति व समस्त सृष्टि के प्रेम के बारे में भी बात करते हैं।

हर इंसानी रिश्ते या निर्जीव वस्तुओं जैसे कि अपने घर या अपनी निजी वस्तुओं के प्रति भी प्रेम का अनुभव भिन्न-भिन्न होता है, परंतु प्रेम के हर रूप में कुछ न कुछ गुण एक जैसे होते हैं। जैसे कि इस संसार की किसी वस्तु के प्रति प्रेम के मामले में उस वस्तु से मोह होता है।

जिसे हम प्रेम करते हैं उसकी हमें बहुत आवश्यकता होती है। उसके लिए हम अपने दिल में गहरा लगाव रखते हैं और हमें यह डर लगा रहता है कि कहीं वह वस्तु हमसे खो न जाए। चाहे प्रेम अपने परिवार के प्रति हो या मित्रों के प्रति, चाहे प्रेमी के प्रति हो या अपने सामान व अपने देश के प्रति, उसमें प्रेम के ये गुण हमेशा मौजूद रहते हैं।

प्रेम के हर अनुभव

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj जी बताते हैं कि प्रेम के हर अनुभव में उसका अहसास हमेशा शामिल होता है। जब हम उनके साथ हों जिन्हें हम प्यार करते हैं तो हम प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। हम उनके साथ शांति, एकाग्रता, संतुष्टि और पूर्णता की भावना महसूस करते हैं।
संत-महापुरुष हमें समझाते हैं कि इस दुनिया का बाहरी प्रेम केवल कुछ समय के लिए ही रहता है।

इसके विपरीत यदि हम सदा-सदा का प्रेम पाना चाहते हैं तो वह हमें केवल प्रभु द्वारा ही मिल सकता है। प्रभु के प्रति प्रेम को अनुभव करने के लिए हमें संपूर्ण सृष्टि के प्रति प्रेम को अपने अंदर जागृत करना होगा। हममें से अधिकतर लोग अपने परिवार और मित्रों के छोटे से दायरे के प्रति ही प्रेम रखते हैं।

आध्यात्मिक तौर पर प्रेम का अर्थ

परंतु जैसे-जैसे हम आध्यात्मिक तौर पर प्रगति करते हैं तो हमारा हृदय विशाल होने लगता है तथा हम अपने समुदाय, समाज, देश व संपूर्ण भू-मंडल के प्रति प्रेम का विकास करने लगते हैं। प्रेम की अंतिम अवस्था ब्रह्मांड की समस्त सृष्टि के लिए प्रेम होना है।

हमें अपने परिवार और मित्रों से प्रेम होने पर जिस आनंद का अनुभव होता है उसका तो हमें अंदाजा है। यदि हम उस प्रेम को इतना फैला दें कि समस्त सृष्टि से हमें प्यार हो जाए तो हम स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि तब हमारे हृदय में कितना अधिक प्रेम होगा।

ऐसा प्रेम पवित्र व आध्यात्मिक होता है। ऐसा प्रेम ही प्रभु को अपनी सृष्टि से होता है क्योंकि प्रेम दिव्य, ईश्वरीय और एक आध्यात्मिक गुण है।

एकमेक होने की आध्यात्मिक लगन

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj के अनुसार दिव्य-प्रेम में आत्मा को अपने पालनकर्त्ता, परमात्मा में फिर से एकमेक होने की आध्यात्मिक लगन होती है। जब प्रभु ने अपनी अंशों को जिन्हें हम आत्माएं कहते हैं अपने आपसे अलग किया, तब वह समय दुःख का था।

इसका सबसे सही उदाहरण हमें माता-पिता की उस भावना से मिलता है जो अपने बच्चे को बड़ा होकर संसार में कार्य करने के लिए घर छोड़ते हुए देखते हैं। माता-पिता और बच्चे में प्रेम का इतना गहरा बंधन होता है कि जब बच्चा अपने माता-पिता से जुदा होता है तो वे अपने दिल में ज़बरदस्त झटका या खिंचाव महसूस करते हैं।

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj कहते हैं कि जब बच्चा बहुत दूर चला जाता है तो माता-पिता अपने दिल में मोह और प्रेम की निरंतर कसक महसूस करते हैं। यह प्रेम बच्चे को लगातार अपने माता-पिता की ओर वापिस खींचता है। जब तक बच्चा दौड़कर उनकी बाहों में नहीं आ जाता, माता-पिता को भी चैन नहीं मिलता।

प्रभु सब आत्माओं के पिता

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj: इसी तरह से प्रभु सब आत्माओं के पिता है। जब वे आत्माएँ इस संसार में एक जीवन से दूसरे जीवन में गुज़रती हैं, तो प्रभु प्रत्येक आत्मा को याद करते हैं क्योंकि वे प्रत्येक आत्मा से प्रेम करते है और हरेक का ध्यान रखते हैं। इस बात का अंदाजा लगाना हमारे लिए कठिन नहीं है क्योंकि हम जानते हैं कि कुछ माता-पिता के जब एक से अधिक बच्चे होते हैं तो वे अपने प्रत्येक बच्चे से प्रेम करते हैं।

प्रभु सदा इंतजार कर रहे हैं कि आत्मा कब अपना ध्यान उनकी ओर लगाएं और उनके पास वापिस घर लौट आएं। वह जानते हैं कि आत्माएं इस संसार और इसके बहुत से आकर्षणों में खो गई हैं। वह चाहते हैं कि आत्माएं उन्हें याद करें और अपने घर वापिस आ जाएं। प्रभु की इस इच्छा का अनुभव हम अपनी आत्मा में खिंचाव के रूप में करते हैं।

जीवन में समय-समय पर प्रत्येक आत्मा को एक प्रकार की हलचल का अहसास होता है और कभी-कभी गहराई में हमारी आत्मा कुछ कमी का भी अनुभव करती है। जब घर वापिस जाने का यह आंतरिक खिंचवा बहुत ज्यादा हो जाता है तो हम उस अवस्था में आ जाते हैं, जिसे आध्यात्मिक जागृति कहा जाता है।

सच्चे प्रेम के लिए संघर्ष

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj: अपने ध्यान को शारीरिक प्रलोभनों के आकर्षण के द्वारा इस धरती से बांधे रखने की अपेक्षा हमें सच्चे प्रेम के लिए संघर्ष करना चाहिए। हम समझते हैं कि हम एक सांसारिक प्रेमी से प्रसन्नता और परमसुख को पा लेंगे, परंतु प्रभु ही सबसे महान प्रेमी हैं। वास्तव में वह हमारे सच्चे प्रियतम हैं।

संत दर्शन सिंह जी महाराज फ़रमाया करते थे कि जब हम अपने प्रभु-प्रियतम से मिलाप कर लेते हैं तो उसके बाद हमें मालूम नहीं होता कौन प्रियतम है और कौन प्रेमी है?

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj ने बताया कि युगों-युगों से सूफियों व संतों ने इस दिव्य-मिलन के बारे में लिखा है। इन वाणियों में उन्होंने इसे प्रेमिका व प्रेमी के मिलन के रूप में वर्णन किया है। प्रभु का प्रेम किसी सांसारिक प्रियतम से कहीं अधिक होता है। प्रभु का प्रेम इतना अधिक संपूर्ण और फैला होता है कि उसमें हम अपने स्वयं का ध्यान भी खो देते हैं।

उस दिव्य-प्रेम में हम समय और स्थान व यहाँ तक कि अपना नाम भी भूल जाते हैं। हम इतने अधिक परमानंद में खो जाते हैं कि हम इसमें से कभी निकलना ही नहीं चाहते।

स्थायी आनंद का अनुभव

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj के अनुसार चाहे सांसारिक प्रेमी हमें छोड़ दें या दुःख पहुँचाएं परंतु प्रभु का प्रेम हमें कभी नहीं छोड़ता तथा न ही हमारे प्रति कभी लापरवाह होता है। वह प्रेम हमें कभी दुःख-दर्द नहीं देता बल्कि वह हमें हमेशा अनंत प्रेम और स्थायी आनंद का अनुभव ही देता है क्योंकि प्रभु हमारे प्रेमी, मित्र, पिता और सब कुछ होते हैं।

जब हम प्रभु के प्रेम से सराबोर रहते हैं तो हम उनके साथ एकमेक हो जाते हैं। तब जिससे भी वह प्रेम करते हैं तो हम भी उससे प्रेम करते हैं। हमारा दिल उनका दिल बन जाता है और हम सारी सृष्टि के प्रति प्रेम को अपने अंदर विकसित पाते हैं।

जब हम इस विश्व में किसी की ओर देखते हैं तो उन्हें उसी दृष्टि से देखते हैं जिससे प्रभु उनकी ओर देखता है। हम उनके लिए प्रेम का अनुभव करते हैं क्योंकि वे भी प्रभु का अंश आत्मा होती है। हम उन्हें उसी प्रकार प्रेम करते हैं जैसे अपने आपको।

प्रभु की ज्योति

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj कहते हैं कि हम हरेक के साथ अपने स्वयं जैसा व्यवहार करते हैं। हम उनमें प्रभु की ज्योति को देखते हैं। हम उनमें से हरेक में अपने प्रियतम का रूप देखते हैं।

प्रभु के इस दिव्य-प्रेम को अनुभव करने के लिए जितना अधिक समय हम ध्यान-अभ्यास में व्यतीत करेंगे, उतना ही अधिक हम इस प्रेम का अनुभव कर पाएंगे। यह प्रेम हमें आंतरिक दिव्य-मंडलों में आगे ही आगे खींचता चला जाएगा, जब तक कि हम स्वयं प्रभु में लीन नहीं हो जाते।

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